लखनऊ में पत्रकार पर जानलेवा हमला, मीडिया जगत में आक्रोश, पुलिस की चुप्पी पर उठे सवाल।


                                          जी0 के0 खरे                                         

राजधानी लखनऊ में सुदर्शन न्यूज़ के पत्रकार सुशील अवस्थी "राजन" पर हुए जानलेवा हमले के बाद पत्रकार समाज में गहरी नाराज़गी है। पत्रकार संगठनों ने आरोप लगाया है कि गंभीर अपराध होने के बावजूद पुलिस जांच की प्रगति को लेकर पारदर्शी नहीं है। कई पत्रकारों का मानना है कि मामले में कुछ प्रभावशाली लोगों का नाम आने की आशंका के कारण पुलिस आवश्यक स्पष्टता नहीं दे रही।


पत्रकारों का विरोध प्रदर्शन, पुलिस के रवैये पर असंतोष।

हमले के विरोध में शनिवार को बड़ी संख्या में पत्रकारों ने प्रदर्शन किया। प्रदर्शन स्थल पर पुलिस ने व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की, जिस पर पत्रकारों ने असहमति जताते हुए कहा कि प्रशासन को सुरक्षा व्यवस्था के बजाय जांच में तेजी लानी चाहिए।


प्रदर्शन के दौरान पत्रकारों ने यह सवाल उठाए

👉 “पुलिस कमिश्नर मौके पर क्यों नहीं पहुंचे?”

👉 “गिरफ्तार आरोपी को मीडिया के सामने क्यों नहीं लाया गया ?”

👉 “जांच की दिशा और प्रगति सार्वजनिक क्यों नहीं की जा रही ?”

कई पत्रकारों का मानना है कि आरोपी की गिरफ्तारी के बाद उसे सीधे जेल भेज दिया गया, लेकिन न तो प्रेस वार्ता की गई और न ही मामले से जुड़ी कोई आधिकारिक जानकारी साझा की गई।


विवाद के केंद्र में जांच की पारदर्शिता।

घटना के बाद से पत्रकारों के बीच यह धारणा बन रही है कि जांच को लेकर पुलिस खुलकर बात नहीं कर रही। कुछ पत्रकारों ने आशंका व्यक्त की कि संभव है कि मामले में किसी राजनीतिक परिवार के सदस्य का नाम जुड़ने के कारण पुलिस सतर्कता बरत रही हो, हालांकि इस संबंध में कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।


पत्रकारों का कहना है कि

👉हमले की वास्तविक वजह अभी स्पष्ट नहीं।

👉कौन-कौन लोग शामिल थे, इसकी जानकारी साझा नहीं की गई।

👉राजनीतिक रंजिश की आशंका पर पुलिस मौन है।

पुलिस की ओर से अब तक केवल गिरफ्तारी की सूचना दी गई है, परन्तु घटना से जुड़े विस्तृत तथ्यों को सार्वजनिक नहीं किया गया।


पत्रकारों द्वारा मांग की गई कि :-

1. पुलिस कमिश्नर अमरेंद्र सिंह सेंगर स्वयं सामने आकर मामले की विस्तृत जानकारी दें।

2. गिरफ्तार आरोपी को कानूनी प्रक्रिया के दायरे में रखते हुए मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया जाए।

3. जांच टीम, उसकी प्रगति, और जांच की दिशा को सार्वजनिक किया जाए।

4. पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पत्रकार सुरक्षा कानून पर ठोस और त्वरित कदम उठाए जाएं।

5. यदि मामले में राजनीतिक दबाव है, तो उसे पारदर्शिता के साथ स्पष्ट किया जाए।







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