दुर्लभ बीमारी से लकवा की चपेट में आई महिला को अपोलो अस्पताल में मिली संजीवनी

                               जी0 के0 खरे                                

- डॉक्टरों ने समय रहते बीमारी की पहचान कर महिला को रोग से पहले वाला जीवन वापस लौटाया

- 39 वर्षीय महिला मरीज में गंभीर पॉलीमायोसिटिस नामक बीमारी पहचानी, एक दुर्लभ ऑटोइम्यून विकार

              लखनऊ : दिल्ली का इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल एक 39 वर्षीय महिला मरीज के लिए संजीवनी बना। अस्पताल के डॉक्टरों ने महिला मरीज को एक ऐसी दुर्लभ बीमारी से बचाया है जिसकी वजह से वह कुछ ही समय में लकवा ग्रस्त हो गई थी। चिकित्सा जांच में डॉक्टरों ने इस बीमारी को एक दुर्लभ ऑटोइम्यून विकार बताया जो सबसे तेजी से मरीज को अक्षम बनाता है। बहरहाल, उपचार के बाद महिला रोगी वापस से चलने फिरने में सक्षम हैं। जानकारी के अनुसार, दिल्ली की 39 साल की महिला मरीज को दिसंबर 2022 में अपने पैरों में कमजोरी महसूस हुई। देखते ही देखते फरवरी 2023 यानी करीब तीन महीने में ही उन्हें खड़े होने में कठिनाई होने लगी। हाथ उठना भी बंद हो गए और ठोस भोजन कर पाना भी उनके लिए संभव नहीं रहा। वह पूरी तरह से बिस्तर पर आ चुकी थीं और सांस लेने में कठिनाई हो रही थी।


तेजी से इनका वजन कम होने लगा और मांसपेशियों में गिरावट आने लगी। इसके बाद नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. पी.एन. रेनजेन की देखरेख में मरीज को भर्ती किया गया। यहां रक्त परीक्षण, एंटीबॉडी परीक्षण, एमआरआई स्कैन, तंत्रिका चालन अध्ययन और मांसपेशियों की बायोप्सी सहित तमाम जांच के बाद डॉक्टरों ने पॉलीमायोसिटिस नामक बीमारी की पहचान की जो धीरे-धीरे मांसपेशियों के ऊतकों पर हमला करती है।

डॉ. पी.एन. रेनजेन ने बताया, "सभी चिकित्सा जांच में मांसपेशियों में सूजन साफतौर पर पता चल रही थी। तंत्रिका संबंधी समस्याओं से इनकार करने वाले विद्युत अध्ययन और मांसपेशियों की बायोप्सी ने और स्पष्ट कर दिया कि सूजन पॉलीमायोसिटिस बीमारी के कारण हैं। यह पॉलीमायोसिटिस सबसे तेजी से अक्षम करने वाले ऑटोइम्यून विकारों में से एक है। अगर हम इस रोगी की बात करें तो उसकी खुद की प्रतिरक्षा प्रणाली ही उसकी मांसपेशियों को नुकसान पहुंचा रही थी। केवल तीन महीनों के भीतर, खड़ा होना, हाथ उठाना, ठोस भोजन निगलना या यहां तक कि ठीक से सांस लेना सब कार्य बंद हो गए। यहां आने के बाद हमने टारगेटेड इम्युनो मोड्यूलेशन शुरू किया।" 

डॉ. रेनजेन ने बताया कि अस्पताल के अलग अलग विभाग की एक संयुक्त टीम ने मिलकर महिला मरीज को बीमारी से पहले जैसा जीवन वापस लौटाया है। जटिलता के बावजूद, हमारी नैदानिक विशेषज्ञता और त्वरित कार्यवाही ने इस मरीज को जीवन जीने का दूसरा मौका दिया है।

दरअसल इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में अपनाए जाने वाला नवोन्वेषी उपचार प्रोटोकॉल भारत और विश्व स्तर पर इस दुर्लभ विकार से पीड़ित कई रोगियों के लिए नई आशा प्रदान कर रहा है। जैसा कि डॉक्टर पुष्टि करते हैं, पॉलीमायोसिटिस को हराने के लिए जबरदस्त चिकित्सा देखभाल, विशेषज्ञता और देखभाल की आवश्यकता होती है। यह संसाधन अपोलो के पास काफी बेहतर हैं। 


इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स के बारे में: 

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स भारत का पहला जेसीआई मान्यता प्राप्त अस्पताल है जो दिल्ली सरकार और अपोलो हॉस्पिटल्स एंटरप्राइज लिमिटेड के बीच एक संयुक्त उद्यम है। जुलाई 1996 में स्थापित यह अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप द्वारा स्थापित तीसरा सुपर-स्पेशियलिटी तृतीयक देखभाल अस्पताल है जो करीब 15 एकड़ में फैला है और इसमें 300 से अधिक विशेषज्ञों के साथ साथ 700 से अधिक ऑपरेशनल बेड, 19 ऑपरेशन थिएटर, 138 आईसीयू बेड, 24 घंटे फार्मेसी, एनएबीएल मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाएं, 24-घंटे आपातकालीन सेवाएं और एक सक्रिय एयर एम्बुलेंस सेवा के साथ 57 विशिष्टताएं शामिल हैं। अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली का किडनी और लीवर ट्रांसप्लांट में देश में अग्रणी कार्यक्रम है। भारत में पहला सफल बाल चिकित्सा और वयस्क यकृत प्रत्यारोपण इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में किया गया था। अस्पताल चिकित्सा प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता में सबसे आगे है। यह अपने रोगियों की देखभाल के लिए नवीनतम नैदानिक, चिकित्सा और शल्य चिकित्सा सुविधाओं की एक पूरी श्रृंखला प्रदान करता है। अस्पताल ने 64 स्लाइस सीटी और 3 टेस्ला एमआरआई, नोवालिस टीएक्स और एकीकृत पीईटी सूट की शुरुआत के साथ भारत में सबसे परिष्कृत इमेजिंग तकनीक पेश की है। इंद्रप्रस्थ अपोलो ने निवारक स्वास्थ्य जांच कार्यक्रमों की अवधारणा को भी आगे बढ़ाया है और दशकों से एक संतुष्ट ग्राहक आधार तैयार किया है। पिछले कुछ वर्षों से द वीक सर्वेक्षण में अस्पताल को लगातार भारत के सर्वश्रेष्ठ 10 अस्पतालों में स्थान दिया गया है।

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