कृष्ण के पुत्र के रूप में द्वापरयुग में कामदेव का जन्म होगा जो सम्भ्राषुर का बध करेगा - सुधाकर जी महराज

                           गणेश प्रसाद द्विवेदी.                           

हनुमानगंज। श्रृष्टि के संचार के लिये जब कामदेव ने शंकर जी की तपस्या को भंग किया तो शिव के तीसरे नेत्र के खुलने से कामदेव का शरीर भस्म हो गया जिसे ब्रह्मा जी ने बडवाग्नि के रूप में समुद्र में समाहित कर दिया जिससे समुद्र में स्थिरता स्थापित हो गयी। समुद्र में घटने और बढ़ने की शक्ति समाप्त हो गयी क्योंकि बडवाग्नि समुद्र के बढ़े रुप को भोजन बना लेती हैं, उक्त उद्गार सोतापुर (जमुनीपुर) में कडे़शंकर तिवारी के यहाँ हो रहे शिवपुराण के पांचवे दिन कामदेव और रति की कथा को बताते हुये कहा।


रति की प्रार्थना से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने कामदेव को बिना शरीर का बना दिया जो द्वापर युग में कृष्ण के पुत्र में एक मछली के पेट जन्म लिया। वही बालक प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेकर सम्भ्राषुर का वध किया। ऋषिराज नारद द्वारा रति और कामदेव का पुनः मिलन द्वापरयुग में हुआ। मायावती बनी रति ने प्रद्युम्न को सम्भ्राषुर के रसोईघर में तरह तरह की शिक्षा दीक्षा देने का कार्य रति ने ही दिया। शिवपुराण का पारायण पाठ पण्डित विनोद पाण्डेय ने किया तथा पण्डित शिवबालक तिवारी व दीनानाथ पाण्डेय द्वारा जाप व आरती तथा मंदिर में स्थापित अन्य देवताओं का विधिवत पूजन कराया गया।

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