गुरूकी महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते आनंदभूषण

 गुरु की महत्ता हमारे जीवन में अनुपम     पंडित आनंद भूषण 

इचौली (हमीरपुर )श्री मदभगवत गीता ज्ञान सप्ताह में गुरूकी महत्ता हमारे जीवन में अनुपम है क्योंकि गुरू के बिना हम जीवन का सार ही नहीं समझ सकते हैं। लेकिन हमेशा इस बात का सदैव ही ध्यान रखना चाहिए कि गुरू के समक्ष चंचलता नहीं करनी चाहिए और सदा ही अल्पवासी होना चाहिए। जितनी आवश्यकता है उतना ही बोलें और जितना अधिक हो सके गुरू की वाणी का श्रवण करें। यह विचार नायकपुरवा (इचौली ) में चल रहे  श्रीमदभागवत कथा के दूसरे दिन पण्डित आनन्द भूषण  महाराज ने व्यक्त किए।


उन्होंने कहा कि गुरू चरणों की सेवा का अवसर मिलना परम सौभाग्य होता है, जो अनमोल है। मुझे भी ठाकुरजी की कृपा से गुरूसेवा का दायित्व मिला था, लेकिन उस समय सेवाभाव का ज्ञान नहीं था और अब जब ज्ञान की प्राप्ति हो चुकी है तो गुरू सेवा का अवसर नहीं हैं। इसलिए गुरू सेवा को समर्पित भाव से करना और उनका आदेश का पालन सदा ही करना चाहिए। गुरू की महिमा अपार है और उनकी करूणा अदभुत है कब किस पर अनुग्रह हो जाएं। उन्होंने धार्मिक ग्रंथो में वर्णित अवतारों के बारे में बताया कि कहीं पर 24 तो कहीं पर दसावतार की कथा बताई जाती है लेकिन अवतारों की संख्या की गणना संभव नहीं है, क्योंकि जितने भक्त होते हैं उतने ही अवतार होते हैं। प्रभु के अवतार प्रयोजन पर भी कहा गया कि यहां किसी राक्षस, दानव और अधर्मी का वध करने के लिए ही अवतरित नहीं होते हैं बल्कि अपने भक्तजनों पर कृपा बरसाने के आते हैं। रावण, कंस को मारने के लिए भगवान को अवतार लेने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा कि घर द्वार छोड़कर वन में चले जाने ही वैराग्य नहीं होता बल्कि अपने अंतःकरण की शुद्धता इसमें नितांत आवश्यक है। हमारे जीवन में विचारों का आदान प्रदान रोम-रोम से होता है इसके लिए सिर्फ नाक, कान और आखें ही नहीं होती हैं। संत महात्मा की दृष्टि को दिव्य बताते हुए कहा गया कि हम उतना ही देख सकते हैं जितनी दूर तक हमारी दृष्टि जाती है, लेकिन संत जन अनंत तक देखने की दृष्टि रखते हैं।

*सत्संग से बदल जाती है जीवन की धारा*

उन्होंनेकहा कि संतो का सत्संग करने यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें कोई बीमारी नहीं आएगी, हमारा परिवार खुशहाल रहेगा या फिर हमारा व्यापार अच्छा चल जाएगा, यह तो प्रारब्ध होता है जो इस दुनिया में आया है उसे एक दिन जाना ही है जब लाभ होता है तो हानि भी निश्चित होती है। सत्संग तो जीवन की धारा बदल देता है जिसमें आप ज्ञान और भक्ति की धारा में बहने लगते हैं, लेकिन यहां पर भी यदि कई बार लोग सत्संग करते हैं लेकिन उसका मूल नहीं समझ पाते, जिससे जीवन पर्यंत सत्संग करने के बाद भी अंत में उनको कुछ भी हासिल नहीं होता है। कथा के दूसरे दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

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