बेजोड़ क्रांतिनत्री झलकारी बाई एक जमीनी जांबाज थी, डॉ.भवानी दीन

                                     अजय कुमार गुप्ता                                    

हमीरपुर / सुमेरपुर, आजादी के संघर्ष मे वीरागंनाओ की भूमिका के मद्देनजर वर्णिता संस्था के तत्तावधान मे विमर्श विविधा के अन्तर्गत जिनका देश ऋणी है के तहत एक बेजोड़ क्रातिनत्री झलकारी बाई की पुण्यतिथि 04 अप्रैल पर संस्था के अध्यक्ष डा भवानीदीन ने श्रद्धान्जलि देते हुये कहा कि एक जमीनी जाबांज थी,इनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है, झलकारी बाई का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झासी के पास  भोजला गाव मे सदोवर सिंह तथा जमुना देवी के घर हुआ था,इनकी मा झलकारी बाई के पैदा होने के बाद जल्दी ही मा का निधन हो गया था,पिता ने ही परवरिश की थी,झलकारी बाई बचपन से साहसी एवं निडर थी, एक बार लकडियों को एकत्रित करने जा रही जगल मे तेदुआ से भेंट हो गयी, इन्होंने कुल्हाड़ी से उसे मार दिया, तबसे ये सुर्खियों मे आ गयीं, पिता ने इन्हें घुडसवारी करना एवं हथियार चलाना सिखाया, ये महारानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, रानी ने इन्हें अपने दुर्गा दल अर्थात सेना का सेनापति बनाया, रानी और गोरों के मध्य झासी मे हुये महासंग्राम मे इनके पति पूरन  ने विकट संघर्ष करते हुये शहीद हो गये थे।एक भितरघाती दुल्हाजू द्वारा किले का गेट खोल देने पर रानी झासी युद्ध सफल न हो सकी,वे झासी से कोच होते हुये कालपी गयीं, रानी के झासी छोडने की योजना के मूल मे झलकारी बाई की मुख्य भूमिका थी,ये घोडे पर सवार होकर गोरों के शिविर मे पहुचीं, जनरल ह्यूज से कहा मुझे फासी दो,रानी के हमशक्ल होने के कारण जनरल अवाक रह गया,04 अप्रैल 1857 को झलकारी बाई नहीं रही, इनका निथन कैसे हुआ, इस पर मतभेद है, कार्यक्रम मे अशोक अवस्थी, सिद्धा, बाबू लाल,प्रेम,संतोष ,आशुतोष, महावीर, पंकज सिंह, रिचा,अजय और दस्सी आदि शामिल रहे।

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